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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या जीवन में आपने किसी को ऐसा धक्का दिया है? I Blog 9 - Divyesh ki Divyvani

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क्या जीवन में आपने किसी को ऐसा धक्का दिया है? स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में 400 मीटर की दौड़ में, केन्या के रनर अबेल मुत्तई सबसे से आगे थे। वह फिनिश लाइन से चार या पांच फीट की दूरी पर रुक गए। उसे लगा की वहाँ पर जो लाइन थी वही फिनिश लाइन है और वह भ्रम और गलतफ़हमी से वही अटक गया। उसके पीछे दौड़ रहे स्पेनिश रनर इवान फर्नांडीज ने यह देखा और सोचा कि कुछ गलतफ़हमी है। उसने पीछे से चिल्लाया और मुत्तई को दौड़ते रहने के लिए कहा। लेकिन, मुत्तई को स्पैनिश भाषा समज में नहीं आती थी। यह पूरा खेल सिर्फ कुछ सेकंड का था। स्पैनिश रनर इवान ने पीछे से आकर मुत्तई को जोर से धक्का दिया बहुत छोटा, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण अवसर। यह दौड़ थी... अंतिम चरण को पूरा करने के बाद विजेता होने की दौड़... इवान चाहते तो खुद विजेता हो सकते थे। इवान फिनिश लाइन पर आकर और अटके हुए मुत्तई को अनदेखा करके विजेता हो सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आखिरकार विजेता मुत्तई को स्वर्ण पदक और इवान को रजत मिला। एक रिपोर्टरने इवान से पूछा, "आपने ऐसा क्यों किया? आप चाहते तो जीत सकते थे। आपने आज स्वर्ण ...

जीवन में हमें गुरु, मेन्टर या कोच की जरुरत क्यों है? I Blog 8 - Divyesh ki Divyvani

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जीवन में हमें गुरु, मेन्टर या कोच की जरुरत क्यों है? स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में हम चाहे पढ़े लिखे हो या अनपढ़ जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितिया आती है जब हम समज नहीं पाते की कैसे सामना करे उस परिस्थिति का। उस वक़्त हमें किसी अनुभवी सलाहकार की जरुरत पड़ती है तो आइये जानते है की कोच , मेंटर या गुरु हमें कैसे मदद कर सकते है।    शेर का एक बच्चा गलती से बिछड़ गया और भेड़ बकरीओ के साथ मिल गया वह छोटा सा था तो वह जानता नहीं था की वो कौन है? वह भेड़ बकरीओ की तरह ही रहने लगा और बड़ा होता गया। एक दिन शेर ने भेड़ बकरीओ को देखा और शिकार करने की ताक में था और उसने देखा के भेड़ बकरीओ के झुंड में एक शेर भी है वो हैरान हो गया। वो भेड़ बकरीओ के झुंड की तरफ गया तो सभी भेड़ बकरीआ शेर के डर से भागने लगे और वो शेर का बच्चा भी भाग ने लगा तभी शेर ने उसे पकड़ लिया और पूछा तुम क्यों भाग रहे हो? शेर के बच्चे ने कहा मुझे तो यही शिक्षा मिली है, यही सिखाया गया है तो में वही करता। शेर उसे नदी पर ले गया और पानी में उसका चेहरा दिखाया और उसे समजाया ...

क्या आप मनकी शांति की तलाश में है? I Blog 7 - Divyesh ki Divyvani

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क्या आप मनकी शांति की तलाश में है? स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में एक किसान था वह खुश और संतोषी था। वह अपने गांव में ही पला बड़ा हुआ था वह खास कुछ पढ़ा लिखा भी नहीं था। वह खेत में जो भी बोता और उससे जो पैसे मिलते उससे उसका घर चल जाता था।   एक बार उसके गांव से हिरे का व्यापारी गुजरा और उसने किसान को हिरे बारे में और हिरे की अहमियत के बारे में बताया। उसने कहा की तुम्हारे पास एक छोटा सा हिरा भी हो तो तुम लखपति बन जाओगे और अगर तुम्हारे पसे थोड़े ज्यादा हिरे हो तो तुम करोड़पति बन सकते हो। इस दिन के बाद से किसान की नींद हराम हो गई। वो दिन रात बस हिरे के बारे में ही सोचने लगा और कुछ दिनों के बाद उसने तैय किया की वो अपना सब कुछ बेचकर हिरे की तलाश में निकल जायेगा। उसने अपना सब कुछ बेच दिया और हिरे की तलाश में निकल पड़ा। उसने बंगाल में तलाश की, बिहार में तलाश की, झारखंड में तलाश की, गंगा नदी के किनारे किनारे उसने बहुत जगह पर तलाश की लेकिन उसे कही हिरे नहीं मिले और वो थक हार कर वापस गांव आया। वापस आते ही उसे पता चला की उसका खेत जिसको वो बेच के गया था   वह अपनी गायों को खेत ...

कैसे लघुताग्रंथि से छुटकारा पाए? I Blog 6 - Divyesh ki Divyvani

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कैसे लघुताग्रंथि से छुटकारा पाए? स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में कई बार आपने देखा होगा कुछ लोग लघुताग्रंथि के शिकार हो जाते है और उनमे काबिलियत होने के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाते है। आज के इस एपिसोड में हम जानेंगे कैसे हम लघुताग्रंथि से छुटकारा पा सकते है और खुद को आगे ले जा सकते है। एक आदमी मेले में गुब्बारे बेच रहा था। उसके पास अलग अलग रंग के गुब्बारे थे। जब कभी उसकी बिक्री कम होती तो वह एक गुब्बारा गैस भरके हवा में छोड़ देता। उसे देखके बच्चे अपने मातापिता के पास गुब्बारा लेनेकी इच्छा व्यक्त करते और उसकी बिक्री फिर से बढ़ जाती। एक दिन मेले में एक छोटा सा लड़का उसके पास आया और उसने गुब्बारेवाले से ये पूछा की "अगर वह काले रंग का गुब्बारा छोड़ेंगे तो क्या वह भी हवा में उड़ेगा?" वह समज गया और उसने बच्चे के सर पर हाथ रखकर कहा "गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं पर उसके अंदर क्या है इसकी वजह से हवा में उड़ता है।" दोस्तों यही बात हम सब पर और हमारे जीवन में भी उतनी ही लागु होती है, हम कई बार खुद ही ऐसी बेड़िया पहनकर...

दुसरो की राय पर निर्भर न रहे I Blog 5 - Divyesh ki Divyvani

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दुसरो की राय पर निर्भर न रहे  स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में आज के एपिसोड में हम जानेंगे की दूसरे लोगो के ओपिनियन पर डिपेंड रहकर हम आगे नहीं बढ़ सकते है। आइये जानते है आज की स्टोरी।   एक चित्रकार ने कई दिनों की मेहनत के बाद एक बहुत ही अच्छा चित्र बनाया था। उसके बाद पता नहीं क्यों लेकिन ऐसा ख्याल आया और उसने उस चित्र को नगर के बीच में रख दिया और सुचना में लिख दिया किसी को इस चित्र में कही कमी लगे तो कलर्स से सर्कल कर दे। इतना कर के वो चित्रकार वहा से चला गया और शाम को जब वो वापस आया तो उसने देखा की चित्र सर्कल से भरा पड़ा था। ये देख के उसे बहुत बुरा लगा। उसे लगा की उसका चित्र न ही इतना ख़राब था या न तो अधूरा था की लोगो ने पुरे चित्र में सर्कल कर दिए।   फिर वह अपने चित्र को लेकर घर आ गया। लेकिन वो इस हादसे से बहुत ही उदास और हताश हो गया। इतने में उसका एक दोस्त उसके घर पर आया। उसके दोस्त ने देखा की चित्रकार बहुत ही उदास है। उस दोस्त ने चित्रकार से पूछा उसकी उदासी के बारे में तो चित्रकार ने पूरी घटना बताई की कई दिनों की मेहनत के ब...

अपनी शक्ति पर अहंकार न करे I Blog 4 - Divyesh ki Divyvani

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अपनी शक्ति पर अहंकार न करे स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में माना जाता है की महाभारत के ३६ साल बाद जरा नामके शिकारी के तीर से भगवान श्री कृष्ण गंभीर रूप से घायल हुए थे और फिर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। उनका पार्थिव शरीर एक वड के वृक्ष के निचे पड़ा था। उनके अंतिम संस्कार के वक़्त अग्नि ने उनके हृदय के अलावा पुरे शरीर को जला डाला। उनके हृदय को समुन्दर में विलीन कर दिया गया। उनका ये हृदय नीलमाधव की मूर्ति में रूपांतरित हो गया और वो मूर्ति उड़ीसा में रहते आदिवासीओ को मिली। उन आदिवासिओ ने उस मूर्ति को गुफा में प्रस्थापित किया। इस बात का राजा इन्द्रध्रुमन को पता चल गया और उसने भगवान के लिए भव्य मंदिर बनाने का सोचा। राजा ने आदिवासीओ से नीलमाधव को लाने का काम उनके दरबारी विद्यापति   को सौंपा। विद्यापति जानते थे की ये काम इतना आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। विद्यापति   ने आदिवासीओ के मुख्या विश्वावसु की बेटी ललिता को अपने प्रेम जाल में फसाया और नीलमाधव के दर्शन के बिना शादी न करने की हठ पकड़ ली। विश्ववसुने कहा की वो विद्यापति   की आँख पर पट्टी बां...

आप अपनी आदतों के मालिक है या गुलाम? I Blog 3 - Divyesh ki Divyvani

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आप अपनी आदतों के मालिक है या गुलाम? स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्य वाणी में आज के   इस ब्लॉग   में हम जानेंगे की आदते कैसे हमें बनाती है या तोड़ती है ... आदत हमें आगे भी लेजा सकती है और पीछे भी खींच सकती है तो आइये जानते है आज की स्टोरी   एक बहुत ही बड़े वकील थे उनकी आदत थी कि अदालत में जब कोई केस लड़ रहे हो और दलील कर रहे हो उस वक्त कोई कंफ्यूजन हो या कोई ऐसा पॉइंट आ जाए जहां पर कुछ अलग सोच ना पड़े उस वक्त अपने कोट के बटन को घुमाने लगते थे। ऐसा करने से उनको लगता की जैसे दिमाग का दरवाजा खुल गया और उनको कोई सोल्यूशन   मिल जाता। एक बार एक ऐसा मुकदमा था जिसमें उनकी हार असंभव थी। लेकिन उनके विरोधी वकीलने उनकी इस आदत को जान लिया था कि जब भी वह कंफ्यूज होते थे अपने कोट के बटन को घुमाने लगते थे। विरोधी वकीलने उनके नौकर को पैसे दे कर उनके कोर्ट के उस बटन को तोड़वा दिया। अगले दिन जब अदालत में मुकदमा शुरू हुआ और वो द...