क्या जीवन में आपने किसी को ऐसा धक्का दिया है? I Blog 9 - Divyesh ki Divyvani

क्या जीवन में आपने किसी को ऐसा धक्का दिया है?



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400 मीटर की दौड़ में, केन्या के रनर अबेल मुत्तई सबसे से आगे थे। वह फिनिश लाइन से चार या पांच फीट की दूरी पर रुक गए। उसे लगा की वहाँ पर जो लाइन थी वही फिनिश लाइन है और वह भ्रम और गलतफ़हमी से वही अटक गया। उसके पीछे दौड़ रहे स्पेनिश रनर इवान फर्नांडीज ने यह देखा और सोचा कि कुछ गलतफ़हमी है। उसने पीछे से चिल्लाया और मुत्तई को दौड़ते रहने के लिए कहा।

लेकिन, मुत्तई को स्पैनिश भाषा समज में नहीं आती थी। यह पूरा खेल सिर्फ कुछ सेकंड का था। स्पैनिश रनर इवान ने पीछे से आकर मुत्तई को जोर से धक्का दिया

बहुत छोटा, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण अवसर।

यह दौड़ थी... अंतिम चरण को पूरा करने के बाद विजेता होने की दौड़...

इवान चाहते तो खुद विजेता हो सकते थे। इवान फिनिश लाइन पर आकर और अटके हुए मुत्तई को अनदेखा करके विजेता हो सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आखिरकार विजेता मुत्तई को स्वर्ण पदक और इवान को रजत मिला।

एक रिपोर्टरने इवान से पूछा, "आपने ऐसा क्यों किया? आप चाहते तो जीत सकते थे। आपने आज स्वर्ण पदक हाथ से जाने दिया।"

इवान ने सुंदर जवाब दिया, "मेरा सपना एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को धक्का दे, लेकिन खुद को आगे बढ़ाने के लिए नहीं पर दूसरों को आगे लाने के लिए, उनकी मदद करने के लिए, उन्हें सशक्त बनाने के लिए, उनकी शक्ति बाहर लाने के लिए। एक ऐसा समाज जहां दोनों एक दूसरे की मदद करते हैं और विजेता बनते हैं।"

रिपोर्टर ने फिर पूछा, "तुमने क्यों मुत्तई को जीतने दिया? तुम जीत सकते थे"

जवाब में, इवान ने कहा, "मैंने उसे जीतने नहीं दिया। वह तो जीत ही रहा था, यह दौड़ उसकी थी और फिर भी अगर मैंने इसे नज़रअंदाज़ किया होता और फिनिश लाइन पार कर ली होती, तो मेरी जीत किसी और से छीनी हुई जीत होती।

और ऐसी जीत पर मुझे गर्व कैसे हो सकता है?

मैं अपनी मां को यह पदक कैसे दिखा सकता?

में अपने अंतरआत्मा को क्या जवाब देता?"

दोस्तों इस कहानी हम सीख सकते है की जीतना ज़रूरी है लेकिन किसी भी कीमत पर जीतना एक मानसिक विकलांगता है। किसी की शोहरत चुराना, किसी की कामयाबी अपने नाम पर कर लेना, दूसरों को धक्का देकर खुद आगे आने की कोशिश करना, ये सब शायद कुछ पलों के लिए जीत का एहसास दिला सकता है पर ख़ुशी नहीं क्युकी हमारी अंतरआत्मा सब जानती है की क्या सच है

संस्कार और नैतिकता विरासत में मिले उपहार है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मिलती ये विरासत है। हमेँ तय करना है कि कल का समाज कैसा होगा। आनेवाली पीढ़िओ मे प्रमाणिकता और नीतिमत्ता के बीज बोए। इस सुंदरता, पवित्रता, आदर्शता को आगे बढ़ाये...

आशा करता हूं कि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा और आपके जीवन में बदलाव लाने में उपयोगी होगा। इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा लोगों को फॉरवर्ड कीजिए ताकि और किसी की जिंदगी में भी बदलाव आ सके। ऐसे ही और ब्लॉग को पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें हमारा चैनल दिव्येश एम डाभी और पढ़ते रहिए दिव्येश की दिव्य वाणी।

धन्यवाद

दिव्येश एम डाभी


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