बोया हुआ रिश्ता - कर भला तो हो भला I Blog 15 - Divyesh ki Divyvani

बोया हुआ रिश्ता - कर भला तो हो भला


हेल्लो दोस्तों, स्वागत है आपका दिव्येश की दिव्यवाणी में...

आज के ब्लॉग में हम जानेंगे कर भला तो हो भलाका क्या मतलब होता है ।

कंडक्टर भाईसाहब, मेरी बेटी बस में अकेली है। वो अपने मामा के घर जा रही है। आप उसका जरा ख्याल रखना। वासणा आये तो उतार देना और अगर सो गई हो तो उसे जगा देना। 

पंद्रह साल पहले की ये घटना है। अगस्त का महीना था बारिश का मौसम था। चरोतर के एक गांव के सुखी और संपन्न पिता अपनी १३ साल की बेटी जयश्री को अहमदाबाद जा रही एस. टी. बस में बैठाते वक्त बस कंडक्टर को विनंती कर रहे थे। लड़की जिस सीट पर बैठी उसके बाजु में अहमदाबाद के मुकेशभाई बैठे थे। वह चुपचाप यह दृश्य देख रहे थे और सुन रहे थे।

जयश्री के पिता रमणभाई बस निकली तब तक वह खड़े रहे। खिड़की में से सलाह देते रहे, अगर खेत का काम ना होता तो में तेरे साथ ही आया होता। ऐसे तुजे अकेले भेजता ही नहीं। तू भी बहुत जिद्दी है, "मामा के घर जाना है, भाई को राखी बांधनी है बस एक ही रट लगा रखी थी तूने भी। वर्ना आज तक तुजे अकेले कही नहीं जाने दिया।

बाप की चिंता अब भी चालू ही थी, "जयश्री बेटा, अपना ख्याल रखना। खिड़की से हाथ बहार मत निकालना और ये कलयुग है किसी पे भरोसा मत करना। कोई कुछ खाना पीना दे तो मना कर देना  और वासणा आये तो कंडक्टर से पूछ के उतर जाना। वहां तेरे मामा तुजे लेने पहुंच गए होंगे और घर जा कर तू सही सलामत पहोच गई ये मुझे फ़ोन जरूर कर देना।  

जयश्री के बाजु में बैठे मुकेशभाई मन ही मन सोच रहे थे, "बेचारा बाप! क्या जमाना आया है! बेटी भले ही छोटी हो लेकिन उसके बाप को उसकी कितनी चिंता होती है!" ये लड़की सिर्फ १३-१४ साल की होगी अभी जवान भी नहीं है फिर भी बाप को चिंता रहती है और सही भी है आज का समय ही कुछ ऐसा है।

टिकिट… टिकिट… करके कंडक्टर टिकिट लेने आया जयश्रीने वासणा की टिकिट मांगी। कंडक्टरने पैसे लेके उसे वासणा की टिकिट दी और दिलासा दिया की "बेटा, डरना मत वासणा आएगा तो में तुजे बता दूंगा।" लेकिन फिर भी जयश्री को डर लग रहा था और हर आधे घंटे बाद वो मुकेशभाई से पूछती "वासणा आ गया क्या?" फिर उसने कहा काका मुझे नींद आ रही में सो जाती हुँ लेकिन आप ध्यान रखना और वासणा आए तो मुझे जगा देना।

वैसे तो ये घटना सुखांत के साथ पूरी हो गई होती लेकिन ज़िन्दगी का सफर इतना सरल नहीं होता। गड़बड़ हुई "वासणा" नाम के कारण। चरोतर में वासणा नाम का एक छोटा सा गांव है ये बात कंडक्टर को तो पता थी पर अहमदाबाद में रहने वाले मुकेशभाई को नहीं पता था। कंडक्टर बस में पीछे के दरवाजे के पास बैठकर टिकिट के आये हुए पैसे गिन रहा था उसमे वासणा गांव कहा पीछे छूट गया पता ही नहीं चला। मुकेशभाई तो अहमदाबाद के वासणा को ही जानते थे तो जब बस अहमदाबाद के वासणा पहुंची तो उन्होंने जयश्री को उठाया और कहा की बेटा वासणा आ गया 

जयश्री तो डर गई, इतना बड़ा शहर, इतनी सारी भीड़...!!! वो तो रोने लगी, मुझे यहाँ नहीं उतरना। मेरे मामा का गांव तो छोटा सा है। बस के मुसाफिर उसे शांत करने में लग पड़े। कंडक्टरने एक रास्ता सुझाया बस को पोलिस स्टेशन ले जाते है। लड़की को पोलिस के हाथ में सौंप देते है। वो उसे सही सलामत उसके मामा के घर पंहुचा देंगे। मुसाफिर में से किसी को ये सही नहीं लगा। पोलिस नाम सुन के जयश्री और जोर से रोने लगी। आखिर में मुकेशभाईने जयश्री से कहा की अगर मुज पर भरोसा है तो मेरे साथ चल। जयश्री को मुकेशभाई में सज्जनता दिखी और उसने रोते रोते हा कर दी।

रिक्शा में जयश्री को लेकर मुकेशभाई अपने घर पहुंचे तब तक में रात हो चुकी थी। फ्लैट में पहुंचकर जयश्री को अपनी पत्नी के हाथ में सौंपते हुए कहा की दूसरे की अमानत है आज रात हमें संभालनी है। पत्नीने जयश्री को बाहो में भर लिया। फिर जयश्री के लिए गरमा गरम खाना परोसा गया। जयश्री की हालत और ख़राब हो गई उसको अपने पिता की बात याद आ गई की "किसी पराए इंसान पे भरोसा मत करना और वो कुछ खाना पीना दे तो मत खाना।" उसने खाना खाने से इंकार कर दिया।

मुकेशभाईने कहा "बेटा, तुम्हारे पास घर का या मामा का फ़ोन नंबर हो तो बताओ तो में बात कर लू।  पर जयश्री इतनी डरी और घबराई हुई थी की उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। उसने एक ही जिद लगा राखी थी की मुझे मेरे मामा के घरे ले जाओ अभी के अभी।

खूब समझाया तब जाके थोड़ा खाया। रात को ९ बजे मुकेशभाई जयश्री को लेके बस स्टैंड पहुंचे और बस वासणा जाने के लिए निकली। रात को ग्यारह बजे जयश्री के मामा के घर पहुंचे और भांजी को मामा के हाथ में सौंपा। तबतक में तो जयश्री के पिता और मामा के घर में जयश्री के गुम होने से हड़कंप मचा हुआ था। 

जयश्री को जिन्दा और सही सलामत देखकर दोनों परिवारों को शांति हुई। रात को जब मुकेशभाई वासणा से घर पहुंचे तो रात को ३ बज रहे थे। उनकी पत्नी जगती हुई सो रही थी। उसने पूछा, "उनको शांति हुई होगी, है ना? उन्होंने आपका आभार माना?"

"हम लोगो ने जो किया इंसानियत के लिए किया। कोई आभार व्यक्त करे या ना करे इससे क्या फर्क पड़ता है?" मुकेशभाई के शब्दों से साफ़ लग रहा था उन लोगो ने आभार व्यक्त नहीं किया था। लेकिन मुकेशभाई को पता नहीं था उन्होंने जिस लड़की को बचाया था वो चरोतर की बेटी थी और चरोतर के लोगो का आभार मानने का तरीका कुछ अलग ही है।

इस बात का प्रमाण उन्हें दूसरे दिन ही मिल गया। गाड़िया भर के जयश्री के माता पिता, मामा मामी, मासा मासी अपने परिवारों के साथ मुकेशभाई के घर पहुंच गए। ढेर सारी भेट सोगादे मुकेशभाई के दोनों बेटो को लिए और बहुत सारा आभार मुकेशभाई के लिए था।

जयश्री के पिता रमणभाईने मुकेशभाई से कहा की "आप नहीं होते तो मेरी बेटी का क्या होता?" फिर जयश्री की तरफ देखकर कहा अपने इन दोनों भाईओ को राखी बांधो और आज से ये हमारा नया रिश्ता शुरू होता है। उसके बाद खाना पीना हुआ और प्यार से सब विदा हुए। रिश्तो के बीज खेत में बो दिए थे अब वक़्त था फसल उगने का। फसल उगी बहुत सारी उगी। साल में दो बार जब भी वेकेशन होता तो रमणभाई मुकेशभाई को सह-परिवार अपने यहाँ छुटिया मनाने बुलाते और रमणभाई को जब कभी काम से अहमदाबाद जाना होता तो वो मुकेशभाई का यहाँ ही रुकते। अब हर रक्षाबंधन जयश्री भी दोनों "वासणा" अपने भाईओ को राखी बांधने जाया करती।

वक़्त बीतता गया... जयश्री अब बड़ी हो चुकी थी और बहुत ही सुन्दर दिखने लगी थी। अब उसके लिए लड़का देखना शुरू किया और एक अच्छे घर का अमेरिका में रहने वाला लड़का उसके लिए पसंद किया और उसकी शादी तय की गई।

"अपनी जयश्री बेटी की शादी है। कुछ सोचा है?" मुकेशभाई की पत्नीने पूछा। उसमे सोचना क्या है? जयश्री मुझे मामा कहती है तो हमें मामेरु (गुजराती परिवार का रिवाज) तो देना ही होगा। मुकेशभाई की आर्थिक स्थिति सामान्य थी फिर भी उन्होंने अपनी पहुंच से ज्यादा करके अपना फर्ज निभाने शादी में पहुंच गए।

शादी हो गई, हनीमून भी हो गया अब दूल्हे को अमेरिका वापस जाने का टाइम आ गया था और जयश्री को साथ ले जाने की फॉर्मेलिटी भी पूरी करनी थी और इस लिए अहमदाबाद आना जरुरी था जयश्री अपने पति को लेकर अपने "मामा" के घर पहुंची। दूल्हे को आश्चर्य हुआ की हमारी और इनकी कास्ट अलग है तो यह तुम्हारे मामा कैसे हुए?

जवाब में नई नवेली दुल्हनने अतीत में घटी पूरी बात बताई। उसे सुनकर पति बोला, "अगर ऐसी ही बात है तो मामा का सबसे बड़ा उपकार तो मेरे ऊपर है, पूछो कैसे?" जयश्रीने पूछा कैसे? तो उसने कहा की अगर मामाने उस दिन तुम्हे नहीं बचाया होता तो तुम मुझे पत्नी के रूप में आज ना मिली होती। मुझे भी इस रिश्ते को याद रखना होगा। फिर वो दोनों अमेरिका पहुंच गए।

उसके बाद अचानक एक दिन जयश्री के पति का मुकेशभाई को फ़ोन आया और कहा मामा में दो दिन आपके घर पर रहा उसमे मेने आपकी आर्थिक मुश्केली और चिंता के बारे में सब जान चूका हूँ। अब आप परेशान मत हो। अपने बेटो को कंप्यूटर या एम.बी.ए. करवाए। अभी तो दोनों छोटे है जैसे बड़े होंगे में उन्हें अमेरिका बुला लूंगा और ये में आप पर कोई एहसान नहीं कर रहा हूँ एक के साथ अपनी सगी बहन की शादी करवाऊंगा और दूसरे के लिए यहाँ परिचित में से कोई अच्छी लड़की ढूंढ दूंगा।

सामने मुकेशभाई बिलकुल चुप थे और उनके रोने की आवाज़ आ रही थी। दामाद ने कहा, "मामा, आप रो क्यों रहे है? ये तो अपने बोया हुआ रिश्ते का बीज ही तो था, जिसकी अब सौला आने फसल निकली है।"   

उस रात मुकेशभाई अपनी पत्नी से कह रहे थे मुझे समज नहीं आ रहा है की ब्रह्माण्ड का संचालन करने वाली अदृश्य शक्ति के मन में क्या होता है? जयश्री के लिए उस दिन मैंने जो भी किया निस्वार्थभाव से किया था और अपना फर्ज समज के किया था। वो आज ये चमत्कार दिखा रहा है या फिर लोग जो कहते है की ईश्वर अच्छे इंसानो का ध्यान रखता है! वरना हमने कहा ऐसी कोई अपेक्षा रखी थी?  

दोस्तों इस कहानी से हम ये सीख सकते है की अगर आप किसी का भला करते है तो आज नहीं तो कल आप का भी भला ही होगा। कुदरत के यहाँ देर है लेकिन अंधेर नहीं।

आप "दिव्येश की दिव्य वाणी" को ऑडियो के स्वरुप में एपल पॉडकास्ट, स्पॉटीफाई, एंकर, गूगल जैसे अन्य पॉडकास्ट पर भी सुन सकते है। अगर आप इसे एपल पॉडकास्ट पर सुन रहे है तो इसे सब्स्क्राइब करना न भूले, अपना रिव्यु और स्टार रेटिंग जरूर दे।

आशा करता हूं कि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा और आपके जीवन में बदलाव लाने में यह उपयोगी होगा। इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा लोगों को फॉरवर्ड कीजिए ताकि और किसी की जिंदगी में भी बदलाव आ सके। ऐसे ही और ब्लॉग को पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें हमारा चैनल दिव्येश एम डाभी और पढ़ते रहिए दिव्येश की दिव्य वाणी।

धन्यवाद  

दिव्येश एम डाभी

 

Follow Me:

Youtube: https://www.youtube.com/divyeshmdabhi

Facebook: https://www.facebook.com/DivyeshMDabhiOfficial

Instagram: https://www.instagram.com/divyeshmdabhi/

Twitter: https://twitter.com/divyeshmdabhi/

LinkedIn: https://www.linkedin.com/in/divyeshmdabhi/

Anchor Podcast: https://anchor.fm/divyeshmdabhi

Blog: https://divyeshmdabhi.blogspot.com/

 

 #divyeshmdabhi  #divyeshkidivyvani 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

असफलता से सफलता की और I Blog 13 - Divyesh ki Divyvani

सेल्स में सफलता कैसे पाए? I Blog 14 - Divyesh ki Divyvani